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कालसर्प योग


ज्योतिष में कुछ खास प्रभावों की चर्चा की गई है और यह भी बताया गया है कि इनका मनुष्य के जीवन पर किस तरह प्रभाव पड़ता है। ऐसा ही एक प्रभाव है कालसर्प। अधिकांश जातकों की कुंडली में इसका प्रभाव देखा गया है। अगर किसी जातक की कुंडली में कालसर्प दोष हो, तो उसे अनेक तरह की परेशानियां आती हैं। इसलिए ज्योतिषियों के अनुसार इस दोष को पूरे विधि-विधान से दूर कर लेना चाहिए, तभी जीवन सुखमय हो पाएगा। कुल 12 प्रकार के कालसर्प दोषों है।

अनंत कालसर्प योग :
अगर लग्न में राहु, सप्तम में केतु तथा इनके बीच में सभी ग्रह हों, तो इसके प्रभाव से जातक को मानसिक अशांति, अस्थिरता, मिथ्या विवाद, षड्यंत्र आदि परेशानियां होती हैं।

पातक कालसर्प योग :
अगर कुंडली में दशम स्थान में राहु, चतुर्थ स्थान में केतु हो, तो नौकरी, व्यवसाय में मुश्किलें, व्यापार में लाभ होने पर हानि का अनुभव जैसी कठिनाइयां आती हैं। इस दोष की वजह से जातक को माता-पिता से वियोग का दु:ख भी सहना पड़ता है।

कलिक कालसर्प योग :
कुंडली में द्वितीय स्थान में राहु तथा अष्टम स्थान में केतु तथा इनके बीच सभी ग्रह हों, तो यह योग बनता है। इसकी वजह से जातक को स्वास्थ्य एवं आर्थिक परेशानियां होती हैं। इनका जीवन सदा संघर्षमय ही रहता है तथा जीवन साथी से भी तनाव रहता है।

वासुकि कालसर्प योग :
यदि कुंडली में तृतीया स्थान में राहु औैर नवम में केतु तथा इनके बीच सभी ग्रह हों, तो जातक का नाते-रिश्तेदारों से कटुता, मित्रों से धोखा तथा भाग्योदय में कठिनाई होती हैं।

शंख पाल कालसर्प योग :
कुंडली में चतुर्थ स्थान में राहु, दशम में केतु तथा इनके बीच सभी ग्रह हों, तो जातक को चल-अचल संपत्ति, वाहन, नौकरी से तकलीफ जैसी परेशानियां आती हैं।

पद्म कालसर्प योग :
कुंडली में पंचम स्थान में राहु और एकादश स्थान में केतु के बीच ग्रह होने से जातक को वृद्धावस्था में संतान से कष्ट, गुप्त शत्रु से हानि, लॉटरी से आर्थिक हानि तथा शरीर में चोट-चपेट का भय बना रहता है।

महापद्म कालसर्प योग :
अगर जातक की कुंडली में छठे स्थान से 12वें स्थान के बीच सभी ग्रह हों, तो जातक को इस प्रकार का दोष परेशानी देता है। इस दौरान उन्हें प्रेम में असफलता, पत्नी से दूरी, निराशाजनक स्थिति, शत्रुओं के दबाव आदि से जूझना पड़ता है।

तक्षक कालसर्प योग :
यदि कुंडली में सप्तम स्थान में राहु और लग्न में केतु के बीच सारे ग्रह हों, तो जातक को वैवाहिक जीवन में कमी, घर में अशांति, शत्रुओं में बढ़ोतरी, धन का नाश आदि समस्याओं से जूझना पड़ता है।

कर्कटिक कालसर्प योग :
अगर जातक की कुंडली में अष्टम स्थान में राहु और द्वितीया स्थान में केतु के बीच सारे ग्रह हों, तो उन्हें जीवन में मित्रों से धोखा, कर्म क्षेत्र में बाधाएं, नौकरी में पदोन्नति, पैतृक संपत्ति के लाभ में कमी आदि समस्याएं आती हैं।

शंखनाद कालसर्प योग :
कुंडली में नवम स्थान में राहु और तृतीय स्थान में केतु के बीच सारे ग्रह हों, तो जातक को भाग्य साथ नहीं देता। वह पिता के सुख से वंचित रहता है और जीवन में सफलता के लिए उसे काफी संघर्ष करना पड़ता है।

विषाक्त कालसर्प योग :
अगर कुंडली में एकादश और पंचम में राहु-केतु के बीच शेष ग्रह हों, तो जातक को जीवन में भाईयों से विवाद, जन्म स्थान से दुराव, हृदय रोग आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

शेषनाग कालसर्प योग :
अगर कुंडली में बारहवें स्थान पर राहु और छठे स्थान में केतु के बीच सभी ग्रह हों, तो यह योग बनता है। इस प्रभाव से जातक को गुप्त शत्रुओं से भय, लड़ाई-झगड़े से अपमान, नेत्र संबंधी दोष, आदि कष्ट सहन करने पड़ते हैं।

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