कलश स्थापना Ghat Sathapanav 28-03-2017
आज मंगलवार में सूर्य उदय अमावस्या के दिन हो रहा हैं और नवरात्रि की
शुरुवात 08.28 बजे सुबह से हो रही हैं। जिस दिन मंगलवार में अमावस्या होती हैं वो
दिन धन धान्य, सुख सौभाग्य प्राप्ति के सबसे उत्तम योग बनाता हैं। अतः आज से होने
वाला नवदुर्गा पुजन धन धान्य में वृद्धि करने वाला और सहायक सिद्ध होगा एवं इस योग में समस्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
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पुजन सामग्री: मां दुर्गा की सोने, चांदी, ताम्बे या मिट्टी की बहुत ही सुन्दर मूर्ति, गंगाजल, पानी वाला नारियल या जटा वाला नारियल, लाल कपड़ा, मौली, रोली, चंदन, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, फल, फूल माला, बिना टुटे
चावल, आम के
पत्ते, तांबे या
मिट्टी का एक कलश, देवी की मूर्ति के अनुसार लाल कपड़े, दुध की
बनी मिठाई, इत्र, लाल चुडी, सिन्दूर, कंघा, दर्पण, काजल, एवं अन्य श्रृंगार की वस्तुए, कपूर, पंचामृत (दूध, दही घी, शहद, शक्कर या चीनी), जौ और एक मिट्टी की पात्र, लोंग, जायफल, लोबान, गुगल की धुप आदि होना अनिवार्य हैं।
सबसे
पहले पुजन स्थान को शुद्ध कर लें इसके उपरांत एक लकडी की चौकी पर लाल वस्त्र
बिछाकर गणपति और देवी की मूर्ति की स्थापना करें। थोडे से गणपति जी को अर्पित कर
दें। किसी पश्चात सबसे पहले मिट्टी के पात्र मे जौ बोए। जौ बोने के बाद इसी के उपर
एक पानी से भरा लोटा या कलश स्थापित कर दें। इस कलश पर ॐ और स्वातिक आदि चिन्ह बना
दे और मोली को इस कलश की गर्दन पर बान्ध दे। इसके बाद इस कलश मे दूर्वा
(दुब घास), चावल, सुपारी, दक्षिणा डाल दे। इस उपर आम के पत्ते रख दे और आम के पत्ते के
उपर एक लाल चुन्नी बान्ध कर एक नारियल रख दें और सभी देवता और तीर्थो का अवाहान
कलश मे करें।
कलश
स्थापना के बाद संकल्प लेकर पुनः गुरु, गणपति
आदि देवाताओं का पुजन करके अंत मे मां दुर्गा का पुजन करना चाहिए। पुजन के पश्चात
देवी मां के पाठ आदि किए जा सकते हैं और अंत में क्षमा याचना करने के पश्चात मां दुर्गा
की आरती करनी चाहिए। आसन का एक कोना उठाकर तीन आचमनी जल डालकर तीन बार “ॐ
विष्णवे नमः” बोलकर जल को मस्तक से लगाना चाहिए। फिर एक प्रदक्षिणा करें।
पुजा के
उपरांत साधक को दुध का सेवन या फलाहार करना चाहिए। इससे माता प्रसन्न होती हैं।
यदि कोई साधक इन दिनो भोजन और जल का त्याग कर दें तो माता उसे सभी सिद्धियां
प्रदान करती हैं इसमें कोई संशय नहीं हैं। प्राप्त हुई सिद्धियों का उपयोग जन
कल्याण के लिए ही किया जा सकता हैं अन्यथा सिद्धि क्षीण होकर साधक का ही अहित करती
हैं।
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