Header Ads

ad

Navratri and Durga Pujan - 11 April, 2013

नवरात्रि में शक्ति उपासना का विशेष महत्व है। वेदों में वर्णित है कि शक्ति ही ब्रह्मांड की ऊर्जा है और शक्ति के द्वारा ही ब्रह्मांड चलायमान है। इसलिए आद्याशक्ति त्रिपुर सुंदरी महिषासुरमर्दिनी सिंह वाहिनी मां जगदंबा की कृपा प्राप्त करने का स्वर्णिम काल नवरात्र है। इसका अर्थ है नौ अहोरात्र अर्थात् वे नौ दिन, नौ रात की संचालिका तथा संरक्षिका हैं, जो दसों दिशाओं को अपनी कांति से दैदीप्यमान करती हैं। उनके अलौकिक अद्भुत शक्तिमयी रूप को देखकर देव दनुज मनुज, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, पितर सभी विस्मित होकर अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं और उनके शक्तिमयी रूप पर मोहित होकर उनका सानिध्य और भक्ति प्राप्त करने के लिए देवी के कुल 52 सिद्ध शक्तिपीठों में एकांत स्थान पर साधना में लीन हो जाते हैं। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार नवरात्र काल में आद्याशक्ति के इस पृथ्वी पर अवतरण का मुख्य उद्देश्य वेदों तथा धर्म संस्कृति की रक्षा करना, दुष्टों का संहार, मानवता की रक्षा तथा दुराचार व अनाचार से धरती वासियों की रक्षा कर सर्वत्र शांति स्थापित करना है। इस दौरान देवी नौ स्वरूपों की पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि देवी का हर रूप भक्तों के लिए कल्याणकारी होता है। इनकी कृपा दुर्गा सप्तशती के पाठ से भी मिल सकती है

वैसे तो मां के कई रूप हैं, पर नवरात्र में उनके नौ स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, महामाया, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा की जाती है। देवी के द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, शतभुज, अष्टभुज और सहस्रभुज आदि अनंत रूप हैं।

नवरात्र में इनकी साधना व आराधना करने से उपासक को लौकिक और पारलौकिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं। दुर्गा सप्तशती में मां भगवती स्वयं कहती हैं, ‘जो साधक इस नवरात्र काल में मेरी पूजा, उपासना तथा दुर्गा सप्तशती में वर्णित मेरे चरित्र का पाठ एवं उसके महात्म्य का श्रवण करता है, मैं उसकी सर्वविध रक्षाकर समस्त मनोरथों की पूर्ति करती हूं। साथ ही उनके सभी दु:ख, क्लेश, ग्रह पीड़ा, शत्रु बाधा, रोग, शोक तथा वाद-विवादों का शमन करती हूं तथा मेरी कृपा से उनकी उन्नति सुनिश्चित होती है। अगर छात्र मेरी उपासना करते हैं, तो उन्हें उनके लक्ष्य की प्राप्ति होती है। इसलिए दुष्प्रभावों से मुक्ति तथा पूर्ण सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मेरे चरित्र का पाठ करना परम कल्याणकारी है।

नवरात्रि पूजन विधि : प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है। सर्वप्रथम कलश स्थापना वाले स्थान को स्वच्छ और गंगाजल से शुद्ध कर ले। फिर इस स्थान पर सप्तधान बिखेर दे। जों धान तिल, कंगनी, मूंग, चना, सांवा आदि सप्त धान हैं। यह बाजार मे उपलब्ध है। सबसे पहले मिट्टी के पात्र मे जौं बो दे फिर इसके उपर कलश की स्थापना करनी हैं। अब कलश के कंठ पर मोली बाँध दें। कलश में शुद्ध जल, गंगाजल तक भर दें। कलश में साबुत सुपारी, कुछ सिक्के, सोना, चान्दी, आदि रख दें। कल्श के उपर चावल से भरा पात्र डाल दे। इसके बाद मे नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मोली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचो बीच रख दें। अब सभी देवी देवताओं से आने की प्रार्थना कर ले। इसके बाद मे एक दीपक जलाये। दीपक का चावल से पुजन कर लें। फिर वरुण देवता का आवाहन करे और उनका पुजन पुष्प, कुम्कुम अक्षत आदि से कर लें।
कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः। मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मातृगणाः समृता॥
कुक्षौ तु सागराः सप्त सप्तद्वीपा वसुन्धराः। ऋग्वेदोsथ यजुर्वेदः सामदेवो ह्यथर्वणः॥
अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः। अत्र गायत्री सवित्री शांतिः पुष्टिकारी तथा।
आयांतु देवपुजार्थं दुरितक्षयकारकाः। गंगे च युमने चैव गोदावरी सरस्वती॥
नर्मदे सिन्धुकावेरि जलेsस्मिन संनिधिं कुरुं। सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदा:॥
आयांतु मम शांत्यर्थंम दुरितक्षयकारका

इसके बाद त्रिदेवो को प्रणाम कर ले और वरुण देवता को नमस्कार कर लें।
ॐ वरुणादि आवाहित देवताभ्यो नमः।

इसके बाद मे नवग्रह का पुजन कर लें। इसके लिए किसी स्थान या कपडे पर नौखाने कुम्कुम से तैयार कर उनका पुजन कर लें। फिर हाथ मे अक्षत और पुष्प लेकर षोडश मातृका चौंसठ योगिनी, दश दिकपाल, पंच लोकपाल, वास्तु पीठ का मानसिक रुप से बुलाये और मानसिक रुप से ही पुजन कर लें। मान लो सभी यहाँ बैठे हैं और आप उनकी पुजा कर रहें हैं।
ॐ मनो जुतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञग्वंसमिमंदधातु।
विश्वे sइह मादयंतामो ॐ प्रतिष्ठ प्रतिष्ठ प्रतिष्ठ ।
कलशे वरुणादि अवाहित देवताः सुप्रतिष्ठिताः वरदा भवंतु।
सर्वे ग्रहाः पीठासीन देवताः सुप्रतिष्ठिता भवंतु।

कलश को इत्र, धूपबत्ती, माला, अक्षत, और मिठाई अर्पित करें। कलश मे सभी देवी देवता का ध्यान कर लें। कल्श स्थपना के लिए जो सामग्री चाहिए उसकी लिस्ट नीचे हैं।

मिट्टी का पात्र, जौं बोने के लिए साफ़ मिटटी या रेत या दोनो मिला सकते हैं, जौं, मिट्टी का कलश या ताम्बे का कलश, शुद्ध जल, गंगाजल, मोली (Sacred Thread), इत्र, साबुत सुपारी, कुछ सिक्के या सोने चान्दी के रुपये, अशोक या आम के 7 पत्ते, कलश ढकने के लिए ढक्कन, ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे बासमती चावल या अक्षत, जटा वाला नारियल, नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा या चुन्नी, फूल माला, देशी घी का दीपक, धुपबत्ती, आदि

कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा।

नवरात्री के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए। इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दायीं और रखना चाहिए। उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए। माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए। इस चित्र मे या कलश पर स्थापित नरियल मे दुर्गा जी का आवाहन करना चाहिए लेकिन इससे पहले संकल्प कर लेना चाहिए। तो अपना नाम पता बोलकर कि मैं कौन किसी कारण से, किस की पुजा कर रहा हूँ बोलना चाहिए। ऐसा करते समय अपने हाथ मे जल ले। बाद मे छोड दे। अपने हाथ मे फूल लेकर दुर्गा जी के चित्र या नरियल पर घुमाते रहे और कहे कि।

ॐ आं ह्रीं क्रों अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं अः क्रों ह्रीं आं श्री दुर्गा देव्याः इह प्राण इह प्राणाः
ॐ आं ह्रीं क्रों अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं अः क्रों ह्रीं आं श्री दुर्गा देव्याः जीव इह स्थित:।
आं ह्रीं क्रों अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं अः क्रों ह्रीं आं श्री दुर्गा देव्याः सर्वेन्द्रियाणि वांगमनस्त्वक्च्क्षुः। श्रोत्रजिव्हाघ्राणपाणिपादपायूपस्थानि इह आगत्य सुखं चिरं तिष्ठंन्तु स्वाहा।

इसके बाद मे अच्छे तरीके से गुरु और गणेश की पुजा करनी चाहिए। इसके बाद मे देवी दुर्गा का पुजन करना चाहिए और देवी माँ के पाठ चरित्र आदि का सुनना या पढना चाहिए। देवी सुक्तं का पाठ जरुर करना चाहिए। ध्यान रहे कि माँ और सभी देवताओं का आवाहन पहले दिन ही किया जाये और अंतिम दिन विसर्जन किया जाना चाहिए।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।

पाठ विधि :  दुर्गा सप्तशती में वर्णित 13 अध्यायों के पाठ करने का विधान है। या फिर पहले मध्यम चरित्र का, तत्पश्चात प्रथम चरित्र का और इसके बाद उत्तर चरित्र का पाठ करना चाहिए। मां के इस चरित्र का पाठ साहस, ओज, सौष्ठव, पौरुष, धन-धान्य तथा समस्त मनोरथों की सिद्धि प्रदान करने वाला है।

यदि समयाभाव की वजह से आप 13 अध्यायों का पाठ करने में असमर्थ हैं, तो दुर्गा सप्तशती में वर्णित दुर्गा सप्तश्लोकी मंत्र का पाठ करने अथवा कवच, अर्गला, कीलक तथा देवीसूक्त का पाठ करने से भी दुर्गा सप्तशती के पाठ के समान ही फल की प्राप्ति होती है। अंत में एक माला नवार्ण मंत्र का जप करना भी पुण्यकारी है। यदि दुर्गा सप्तशती के पाठ में कुछ सिद्ध मंत्रों का संपुट लगाकर पाठ किया जाए, तो शीघ्र ही अभीष्ट की प्राप्ति होती है।
ॐ जयन्ती मङ्गलाकाली भद्रकाली कपालिनी। 
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।।

कुछ अन्य बाते: दीपक के नीचे बिना टुटे चावल रखने से माँ महालक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा सप्तधान्य रखने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है। नवरात्रि में मां भगवती दुर्गा का व्रत रखने का तथा प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विशेष महत्व है। हर एक मनोकामना पूरी हो जाती है। सभी कष्टों से छुटकारा दिलाता माता की पूजा "लाल रंग के कम्बल" के आसन पर बैठकर करना उत्तम माना गया है। देवी माँ इत्र/अत्तर विशेष प्रिय है। प्रतिदिन कंडे की धूनी जलाकर उसमें लोबान, गुगल, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, कपूर, कमलगट्टा जरूर अर्पित करना चाहिए।

No comments

अगर आप अपनी समस्या की शीघ्र समाधान चाहते हैं तो ईमेल ही करें!!